'उनको ये शिकायत है.. मैं कत्ल-ए-मोहब्बत पे नहीं लिखता,
और मैं समझता हूँ मैं उनकी बेवफाई पे नहीं लिखता,'
'इस जहाँ में, क़दर-ए-मोहब्बत किसको है,
मैं इसलिए उनकी, रुसवाई पे नहीं लिखता,'
'खुद से बुरा, ज़माने में कौन है??
मैं इसलिए उनकी.. बुराई पे नहीं लिखता,'
'तन्हाई दस्तूर-ए-जमाना है,
मैं इसलिए उनकी.. बक्शी तन्हाई पे नहीं लिखता,'
'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता,'
'जब जिंदगी वीरानियो, में जीने का नाम है,
तो मैं खवाबो की दुनिया पे नहीं लिखता,'
'दुनिया का क्या है?? वो तो हर हाल में बोलती है,
वरना क्या बात दो हर्फ़?? मैं अपनी.. सफाई पे नहीं लिखता,'
'दास्तान-ए-उल्फत पे लिखू कुछ हर्फ़, मगर एक रुकावट है,
मेरे उसूल, मैं आक़ -ए-निस्यान-ए-दास्तान पे नहीं लिखता,'
'मैं नहीं करता हूँ हसीन मौसम पे अर्ज़,वो कहते है,
क्यूंकि, मैं ऐयाम -ए-खिज़ा में हर्फ़-ए-अब्र-बहार पे नहीं लिखता,'
'उनके दर्द को, मैं नज्मो में महसूस करता हूँ,
पर ये सच है, मैं आँखों से आब-ए-चश्म की जुदाई पे नहीं लिखता,'
'उनको ये ख़ता है, मैं उनके आलम को नहीं समझता,
अगर ये सच है तो मैं ये नज़्म नहीं लिखता,'
और मैं समझता हूँ मैं उनकी बेवफाई पे नहीं लिखता,'
'इस जहाँ में, क़दर-ए-मोहब्बत किसको है,
मैं इसलिए उनकी, रुसवाई पे नहीं लिखता,'
'खुद से बुरा, ज़माने में कौन है??
मैं इसलिए उनकी.. बुराई पे नहीं लिखता,'
'तन्हाई दस्तूर-ए-जमाना है,
मैं इसलिए उनकी.. बक्शी तन्हाई पे नहीं लिखता,'
'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता,'
'जब जिंदगी वीरानियो, में जीने का नाम है,
तो मैं खवाबो की दुनिया पे नहीं लिखता,'
'दुनिया का क्या है?? वो तो हर हाल में बोलती है,
वरना क्या बात दो हर्फ़?? मैं अपनी.. सफाई पे नहीं लिखता,'
'दास्तान-ए-उल्फत पे लिखू कुछ हर्फ़, मगर एक रुकावट है,
मेरे उसूल, मैं आक़ -ए-निस्यान-ए-दास्तान पे नहीं लिखता,'
'मैं नहीं करता हूँ हसीन मौसम पे अर्ज़,वो कहते है,
क्यूंकि, मैं ऐयाम -ए-खिज़ा में हर्फ़-ए-अब्र-बहार पे नहीं लिखता,'
'उनके दर्द को, मैं नज्मो में महसूस करता हूँ,
पर ये सच है, मैं आँखों से आब-ए-चश्म की जुदाई पे नहीं लिखता,'
'उनको ये ख़ता है, मैं उनके आलम को नहीं समझता,
अगर ये सच है तो मैं ये नज़्म नहीं लिखता,'
'तजुर्बा आपकी उल्फत, ना लिखने की वजह बस ये,
कि ना हो हरे जखम-ए-तबाही , इसलिए मैं नहीं लिखता,....