आफताब था कभी मैं लेकिन....
ये रौशनी अब मुझे भाती नहीं....
ख़ाक से लिपटकर फिर सायद
शमा कोई जगमगाती नहीं.....
क्या दे तुझे बद-दुआ अब बर्बाद होने की ...
दुआ में भी वो बात अब नज़र आती नहीं........
ये रौशनी अब मुझे भाती नहीं....
ख़ाक से लिपटकर फिर सायद
शमा कोई जगमगाती नहीं.....
क्या दे तुझे बद-दुआ अब बर्बाद होने की ...
दुआ में भी वो बात अब नज़र आती नहीं........